विश्व साइकिल दिवस
साइकिल चलाना विशेषकर लड़कियों और महिलाओं का साइकिल चलाना एक ज़माने में हमारे पिपरिया जैसे छोटे से शहर में कौतूहल का विषय होता था l कोई लड़की अगर सड़क पर साइकिल चलाते हुए दिख जाए तो देखने वालों का पहला सवाल होता था कि " काय जा कौन की मोड़ी है ?' लड़की जब साइकिल से गुजरती थी तो सबकी निगाह उसका तब तक पीछा करती थी जब वह कोई मोड़ मुड़कर आंखों से ओझल ना हो जाये l
हम जब कॉलेज में पढ़ते थे (1978 - 1981 ) जब दो - तीन लड़कियां साइकिल पर आती थी l उनका रुतबा और स्मार्टनेस अलग से देखी जा सकती थी l साइकिल चलाने मात्र से जो कॉन्फिडेंस उनके व्यक्तित्व में आया वह आसानी से समझ में आता था l
बदलाव के दौर में लड़कियों के आत्मविश्वास बढाने के लिए ,उनके सशक्तिकरण के लिए गांव से स्कूल आने वाली बालिकाओं को सरकार ने साइकिल प्रदान की l इससे यह लाभ हुआ कि अब लडकिया बेख़ौफ़ साइकिल चलाकर पढ़ने शहर आती है बल्कि घर के छोटे मोटे काम भी कर लेती है l साइकिल चलाती बच्चियों को देखकर ऐसा लगता है जैसे उनके पंख निकल आये हों l आजकल आठवी नौंवी क्लास तक आते आते लगभग हर स्कूल जाने वाली लड़की साइकिल चलाना सीख लेती है l
अब हमारा शहर भी स्मार्ट हो गया है कोई लड़की साइकिल क्या एक्टिवा या फोर व्हीलर चलाते हुए भी निकल जाए तो कोई उसे आंख उठाकर नहीं देखता l अब उन्हें सब सामान्य लगता है l
gopal rathi
साइकिल सीखने और चलाने के सबके अलग अलग और रोचक अनुभव हैं कभी सुनने बैठो तो ऐसा लगता है कि ये तो हमारे मन की बात कह रहा है l साइकिल एक अनोखा वाहन है जिसमे कोई ईंधन खर्च नहीं होता l पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल है l शारीरिक श्रम का यथासंभव उपयोग होता है l दस बारह किलोमीटर के दायरे में जाना आना करने के लिए हर व्यक्ति को साइकिल का ही उपयोग करना चाहिए l समाज सेवियों और पर्यावरण की चिंता करने वालों को यह पहल करनी चाहिए l
यह 10 वर्ष पहले की फ़ोटो है l आदिवासी ग्राम अनहोनी की बालिकाएं साइकिल से स्कूल जा रही थी l जंगल के रास्ते में जाते हुए दिखी तो हमने उन्हें रोककर बातचीत की और फ़ोटो उतरवा ली l साथ में कमलेश भार्गव और डापका के रेवती मेहरा भी थे l
विश्व साइकिल दिवस की शुभकामनाएं