"संस्कृति के चार अध्याय"राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की कालजयी कृति है l भारत का इतिहास और संस्कृति से साक्षात्कार कराने वाली इस कृति को सभी को कम कम से संघी मित्रों को एक बार ज़रूर पढ़ना चाहिए l यह पुस्तक इतिहास और संस्कृति की एक विहंगम झांकी प्रस्तुत करती है l "संस्कृति के चार अध्याय को सन1959 मे साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था l
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी की छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के ऐसे कवि थे जिनकी कविताओ में एक ओर ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति का तेज है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं और प्रेम की इतनी कोमल अभिव्यक्ति जिसकी बारीकी पढ़ने वालों को सहसा स्तब्ध कर देती है। उन्होंने 'कुरुक्षेत्र, हुंकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा जैसी काव्य रचनाओं में एक तरफ जहां सामाजिक -आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को आधुनिक संदर्भ और प्रखर शब्द देकर हमारे समय की विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया तो दूसरी ओर 'उर्वशी' में स्वर्ग की परित्यक्ता एक अप्सरा की कहानी के बहाने मानवीय प्रेम, वासना और स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की गहरी पड़ताल की। 'कुरुक्षेत्र' और 'उर्वशी' उनके व्यक्तित्व के दो ऐसे ध्रुव है जिनके अंतर्संघर्ष की बुनियाद पर उनका विराट काव्य-संसार खड़ा है। दिनकर के बाद फिर किसी हिंदी कवि को वह स्वीकार्यता और प्रचंड लोकप्रियता नसीब नहीं हुई ! कविताओं के अलावा अपनी कई कालजयी गद्य रचनाओं, ख़ासकर 'संस्कृति के चार अध्याय' में उन्होंने सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं के बीच भारत की एक राष्ट्र के रूप में बेहद तार्किक और सशक्त तस्वीर खींची है।
प्रस्तुत चित्र मे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी अपनी "संस्कृति के चार अध्याय कृति भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰राजेन्द्र प्रसाद को भेट कर रहे है l
23 सितंबर को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर का जन्मदिन है -- उन्हे शत शत नमन