देश-दुनिया के हालात देखते हुए कल देर रात ईश्वर को बहुत भला-बुरा कहकर सोया। संयोग देखिए कि आंख लगी और ईश्वर हाज़िर। मैं कुछ पूछता, उसके पहले ही उनकी आवाज आई - 'मैं ही हूं ईश्वर। सुना है कि तुम्हें मुझसे बहुत सारी शिकायतें हैं, वत्स ?' मेरा गुस्सा क़ायम था। मैंने पूछा - 'इतनी गंदी, बीमार और पागल दुनिया आपने ही बनाई है, महाराज? आपकी इस दुनिया में आप खुद दो पल नहीं रह सकते।' उन्होंने हंसकर कहा - 'ये दुनिया कहां से तुम्हें गंदी और बीमार लगी ? ऐसी शस्य-श्यामला धरती, समुद्र, नदियां, पर्वत, झरने, वृक्ष, फूल-फल, जीव-जंतु, पक्षी, ऊपर विस्तृत नीला आकाश और बीच में प्राणदायिनी हवा ! यहां जो कुछ गंदा है, भयानक है, बीमार है वह मेरी नहीं, तुम मनुष्यों की देन है।'
पेंटिंग Rohit G Rusia
मेरा गुस्सा अब भी कम नहीं हुआ। मैंने पूछा - मानता हूं कि यह गंदगी मनुष्यों की देन है, लेकिन पृथ्वी पर इतने पतित और अविवेकी मनुष्यों को भेजने की ज़िम्मेदारी किसकी है ? कोई क़ायदे की चीज़ भी तो बना सकते थे आप ?' उसकी हंसी तेज हो गई - 'तुमने बच्चों को कभी ध्यान से देखा है ? कितने भोले, सहज, निश्छल और प्यारे होते हैं न ! मैं तो तुम सबको वैसा ही बनाकर भेजता हूं धरती पर। बाद में तुमलोग जैसे बन जाते हो, उसे देखकर मुझे भी दुख होता है।'
मेरे तेवर थोड़े ढीले पड़ चुके थे - 'यह भी सही, लेकिन अपनी बनाई दुनिया को चलाने और यहां हो रहे असंख्य अपराधों, अन्यायों और रोगों का प्रतिकार करने की ज़िम्मेदारी से आप कैसे बच पाओगे ? ईश्वर ने कहा - 'मेरे पास चलाने के लिए असीम ब्रह्मांड है, पुत्र। तुम्हारी पृथ्वी उसका एक बहुत छोटा हिस्सा है। मैंने तुम मनुष्यों को बुद्धि-विवेक देते हुए इसे चलाने, बचाने, संवारने का भार सौंप रखा है। तुम नहीं कर पाए तो कोई और आएगा। यही सृष्टि-चक्र है। तुमपर और तुम्हारी पृथ्वी पर दिनोदिन बढ़ता संकट चेतावनी है तुम सबके लिए। इसे जितनी जल्दी समझ जाओ, उतना अच्छा। जिस तरह तुम्हें संपूर्ण ईश्वर की खोज रहती है, मुझे भी तो संपूर्ण मनुष्य की तलाश है।'
मुझे निरुत्तर देख ईश्वर मुस्कुराए। जबतक मैं जवाब सोचता, वे जा चुके थे। नींद से जागने के बाद चाय का कप लेकर घर के बालकनी में आया तो बाहर शीतल हवा चल रही थी। सामने के पेड़ों पर चिड़ियों का शोर था। लॉन के फूलों, पौधों और पत्तों में चमक। हवा में ताज़गी। कॉलोनी की खाली, साफ-सुथरी, चमकीली सड़क पर मोहक सन्नाटा। सामने वाले अपार्टमेंट के पीछे से निकलते सूरज का ऐसा खुशनुमा चेहरा पहले कभी नहीं दिखा था। मुझे लगा, ईश्वर सच बोल रहे थे। लॉकडाउन के इन कुछ ही दिनों में हम मनुष्यों के दृश्य से हट जाने के बाद यह दुनिया कितनी खूबसूरत लगने लगी है !
ध्रुव गुप्त
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी